Saturday, August 7, 2010

मेरी वेदना

वह खटिया पर पड़ी हुई वेदना पूर्ण नज़रों से अपने छोटे छोटे मासूम बच्चों
को देख रही थी , और जाने किया सोच रही थी ? उसे अल्सर के बाद कैंसर हो गया , दो आपरेशन हो गए
कीमोथेरेपी ने सर के बाल तक उड़ा दिए अब तो वो सिर्फ हड्डी के ढांचे के सामान रह गयी है
सामने तिन साल , पांच साल की दो बच्चियां खाने के लिए
टेबल पर उधम मचा रही हैं और माँ कुछ भी न कर पाने की लाचारी की हालत में मासूमों को निरीह प्राणी के समान देख रही है
खाने को बहुत है पर खा नहीं सकती और बच्चे खाते नहीं , कितने दुःख की बात है हाथ का निवाला हाथ में ही रह जाता है
कितनी बदनसीब माँ है जो अपने बच्चों को दो कौर भी खिलाने की हालत में नहीं है
जो भी रिश्ते दार आता है खुद खा - पी कर जाता है पर बच्चों और माँ देखते रह जाते हैं
दुनिया में गम हमेशा अपना ही होता है
एक दिन रात में वो चल बसी सुबह सब रिश्तेदार वहां थे मैं उन दो मासूमों के साथ खड़ा था
सब खा - पी कर ही आये होंगे , पर तीन साल और पांच साल के बच्चों की किसी को भी चिंता न थी
कहने को वो सब मामा , चाचा , ताऊ थे जब उठी तो मैं तीन साल की बच्ची को हाथ में उठाये देख रहा था
लाश की आखें अब भी खुली ही थीं शायद वो अपने बच्चों को ढूंढ रही थी , या फिर उनके बारे में कुछ सोच रही थी
मैं मौन सा सोच रहा था क्या यही है जिंदगी ? जिसके पीछे लोग भागते रहते हैं मैं सोच रहा था जैसे वाकर पर लोग दौड़ते हैं वैसे ही जिंदगी है
आखिर में हम वहीं है , जहां से शुरुआत करते हैं
हम सिर्फ दौड़ते हैं
------राज शेखर , रायपुर ----

Wednesday, July 21, 2010

मेरी अन्तर वेदिना

मुझे मेरा पहला दिन ससुराल का याद आया सुबह उठते ही सब नया लगा , माँ की जगह सास और भाइयों की जगह देवरों को पाया
घर के नियम और ससुराल के नियमों में अंतर पाया अपने आप को सँभालने में ही महीनों लग गए
मैं अपने छोटे से samrajy की महारानी हूँ , मेरे बगैर घर में कुछ भी नही होता 30 साल से मैं इसे बहुत कुशलता से संभाल कर आ रही थी , कि अचानक
कोई मेरे पीछे खड़ा महसूस किया और देखा , बहु ! एक बार तो मन में आंदोलित हो गया कोई मेरे छोटे से साम्राज्य में घुस गया हे ,फिर अपने आप को
संयमित कर के सोचने लगी ,कि मेरे जैसे ही मेरी बहु भी अपने आप को ससुराल का पहला दिन सा महसूस कर रही होगी !
में सोचने को मजबूर हुई ,कि क्या सास बहु का रिश्ता सिर्फ साम्राज्य के लिए ही लड़ना हे, अन्तर्द्वन्द के बाद मैने कहा बहु चलो हम सब के लिए
आज से तुम खाना बनाओगी,बस सुनते ही बहु कि आखों में एक चमक देखी (जो लडकियं मायके में रसोई से कोसों दूर भागती हे ) वो हिरनी क़ी तरह छ्लंगे मार
कर सारा कम कर रही थी !
खाने के साथ में सोच रही थी ,आज से मेरे साम्रज्य में एक और महारानी का पदार्पण हुआ ! मुझे लगा आज में महारानी से रानीमाँ बन गयी , यह सोच कर
दिल को एक अजीब सी तसली हुई ! और दिल हलका हो गया !

कभी ऐसा क्या औरत सोच सकती हे ?